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बिना काम के महिलाओं को मानदेय दे रहे प्रधान

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लखनऊ। विकासखंड माल की कई पंचायत में सामुदायिक शौचालयों का लगभग 2 वर्ष पूर्व निर्माण होने के बाद से आज तक ताला लटक रहा है परंतु ग्राम प्रधान और सचिव द्वारा शौचालय में एक दिन भी काम न करने के बावजूद केयरटेकर का भुगतान किया जा रहा है। क्षेत्र में कई पंचायतें ऐसी हैं जहां के शौचालय बंद पड़े हैं। कुछ पंचायत में शौचालय अभी तक अधूरे पड़े हैं बावजूद इनके पूर्व में तैनात रहे सचिन अथवा प्रधान ने लाखों की धनराशि निकाल ली लेकिन शौचायलयों का पूरा निर्माण नहीं किया जिससे वह अधूरे पड़े हैं। इसी क्रम में बकरा बाजार गांव के शौचालय में ताला लटक रहा है यहां केयरटेकर का मानदेय लगातार सरकारी खाते से दिया जा रहा है जो सरकारी धन का दुरुपयोग है। ग्राम पंचायत तिलन,सस्पन, उमरावल ए सामुदायिक शौचालय विभिन्न कर्म से बंद पड़े हैं और ग्राम पंचायत गोपालपुर तथा नरायनपुर के शौचालय आज तक अधूरे पड़े हैं फिर भी अधिकारियों ने आज तक दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। दूसरी ओर ग्राम पंचायत गौरैया के सामुदायिक शौचालय में नियमित रूप से कम कर रही महिला को लगभग 3 साल से प्रधान ने आज तक मानदेय नहीं दिया है जबकि वह कई बार प

सील चलानी कारवाई सब मेरठ विकास प्राधिकरण के भ्रष्ट अभियंता सचिव और जोनल अधिकारी का खेल

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कचहरी पुल के पास अभियता की शह पर सील लगने के बाद चल रहा अवैध निर्माण? लोकेश कुमार  मेरठ विकास प्राधिकरण जॉन D 1 क्षेत्र के कचहरी पुल के पास बैंक के सामने चल रहा एक अवैध कमर्शियल दुकानों के परिसर का अवैध निर्माण जिसमें भ्रष्ट अभियंता ओमपाल यादव ने अवैध निर्माण पर सील लगाकर उसे आचार संहिता में पूरा करने में लगा हे।  भ्रष्ट अभियंता ओमपाल यादव के क्षेत्र में अनेक ऐसे अवैध निर्माण है जिन पर सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अभियंता अपने चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को भेजकर सील लगाने के नाम पर उन्हें डरा धमका कर उनसे मोटी उगाही कराई जाती है और अवैध निर्माण को बिना ध्वस्त करे ही उस अवैध निर्माण को पूर्ण रूप से फाइल को दबा देता है।  कचहरी पुल के पास चल रहे अवैध कमर्शियल दुकानों के कॉम्प्लेक्स की कंपाउंडिंग अगर मेरठ विकास प्राधिकरण के राजस्व को कराई जाए तो लाखों करोड़ों रुपए का मुनाफा योगी सरकार को हो सकता है पर मेरठ में बैठे कुछ भ्रष्ट अभियंता सचिव जोनल अधिकारी ऐसा नहीं कर पा रहे हैं।बल्कि आचार संहिता का उल्लंघन कर उन अवैध निर्माणों को पूर्ण रूप से तैयार जल्द से जल्द करा रहे हैं। ऐसा ही एक दू

..और जिंदगी में पैर ठहर से गये!

उस दिन सबेरे आठ बजे मैं अपने शहर से दूसरे शहर जाने के लिए निकला।  मैं रेलवे स्टेशन पँहुचा, पर देरी से पँहुचने के कारण मेरी ट्रेन निकल चुकी थी।  मेरे पास दोपहर की ट्रेन के अलावा कोई चारा नही था। मैंने सोचा कहीं नाश्ता कर लिया जाए । बहुत जोर की भूख लगी थी। मैं होटल की ओर जा रहा था। अचानक रास्ते में मेरी नजर फुटपाथ पर बैठे दो बच्चों पर पड़ी। दोनों लगभग १०-१२ साल के रहे होंगे। बच्चों की हालत बहुत खराब थी। कमजोरी के कारण अस्थि पिंजर साफ दिखाई दे रहे थे। वे भूखे लग रहे थे। छोटा बच्चा बड़े को खाने के बारे में कह रहा था और बड़ा उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था।  मैं अचानक रुक गया। दौड़ती भागती जिंदगी में पैर ठहर से गये। जीवन को देख मेरा मन भर आया। सोचा इन्हें कुछ पैसे दे दिए जाएँ। मैं उन्हें दस रु. देकर आगे बढ़ गया  तुरंत मेरे मन में एक विचार आया कितना कंजूस हूँ मैं! दस रु. का क्या मिलेगा?  चाय तक ढंग से न मिलेगी! स्वयं पर शर्म आयी फिर वापस लौटा। मैंने बच्चों से कहा - कुछ खाओगे? बच्चे थोड़े असमंजस में पड़ गए! जी। मैंने कहा बेटा! मैं नाश्ता करने जा रहा हूँ, तुम भी कर लो! वे दोनों भूख के कारण तै

समता, बंधुता और शांति का पैरोकार हो रंगमंच! -मंजुल भारद्वाज

विश्व_रंगमंच_दिवस पर समता, बंधुता और शांति का पैरोकार हो रंगमंच, पर ऐसा हो नहीं रहा. रंगमंच सत्ता के वर्चस्व का माध्यम भर रह गया है और रंगकर्मी उसकी कठपुतलियाँ जो रंगकर्म के मूल उद्गम के ख़िलाफ़ है.   रंगकर्म का मूल है विकार से मनुष्य और मनुष्यता को मुक्त करना .  मनुष्य के विचार को विवेक की लौ से आलोकित करना. रंगकर्म समग्र है, मनुष्यता का पैरोकार है. रंगकर्म की प्रक्रिया ‘स्वयं’ को आग में जलाकर ज़िन्दा रखने जैसी है. आत्मविद्रोह का अहिंसात्मक, कलात्मक सौन्दर्य है रंगकर्म. सौंदर्य बोध ही इंसानियत है. सौंदर्य बोध सत्य को खोजने,सहेजने,जीने और संवर्धन करने का सूत्र है. सौंदर्य बोध विवेक की लौ में प्रकशित शांति की मशाल है जो तलवार से टपकते खून को निरर्थक साबित कर तलवारबाज़ों को मनुष्यता के योद्धा नही शत्रु सिद्ध करती है. रंगकर्म के इसी सौंदर्य बोध को सत्ता ने लूट लिया. सौंदर्य बोध के अमूर्त विवेक को मूर्त शरीर तक सिमटा दिया. कलाकारों को विवेक सौंदर्य से चमकने की बजाय भोग और लिप्सा के वशीभूत कर सत्ता के गलियारों में रेंगते हुए प्राणियों में बदल दिया. रंग यानी विचार के कर्म को नुमाइश बना दिया. दुन

मानव का शत्रु है हिंदू राष्ट्र!

हिंदू राष्ट्र का मतलब क्या है? मंज़िल  हिंदू राष्ट्र का मतलब भारत में रहने वाले पड़ोसियों का राष्ट्र नहीं है।  हिंदू राष्ट्र का मतलब साफ है मनु के वर्णवाद पर आधारित राष्ट्र जहां धर्म के नाम पर वर्ण का बोलबाला होगा।  वर्ण व्यवस्था का सीधा अर्थ है ब्राह्मणवाद का राज रक्षा करना, क्षत्रियव्यापार का समर्थन करेंगे वैश्य और सेवा करेंगे शूद्र और दासियाँ जैसा कि आमीन में है।  स्वतंत्र भारत में संविधान से मिले मौलिक अधिकार के बल पर आज जो शूद्र वर्ण की जातियां बिना सोचे समझे हिंदू राष्ट्र का अंध समर्थन कर रहे हैं उन्हें याद रखना जरूरी है कि किस जाति पर आधारित समाज या व्यवस्था में उनका स्थान है?  आज वे कोई मांगता है तो असल में संविधान की वजह से क्योंकि संविधान ने उन्हें और वोट का अधिकार दिया है, इसलिए धार्मिक संघ उन्हें मांगता है।  ढोंगी प्रधान मंत्री चुनाव के समय पाँव धोता है।  नेता वोट के लिए अपने घर का खाना और तरह-तरह के पाखंड तोड़ते हैं।  भारत एक विचार की संकल्पना को बढ़ावा देना अब अनिवार्य हो गया है।  राम को राजनीति में संघ ने क्यों उतारा?  राम को राष्ट्रीय अस्मिता का लाभ कैसे मिला?  लानत राम

मुन्ना…ए मुन्ना…?

(व्यंग) एक सज्जन बनारस पहुँचे। स्टेशन पर उतरे ही थे कि एक लड़का दौड़ता आता। ‘मामाजी…मामाजी-  लड़के ने लपक कर चरण छूए। वे पहचाने नहीं….बोले- तुम कौन ? मैं मुन्ना….आप पहचाने नहीं मुझे ? मुन्ना ? वे सोचने लगे….. हाँ, मुन्ना….भूल गये आप मामाजी….खैर, कोई बात नहीं, इतने साल भी तो हो गये। तुम यहां कैसे ? मैं आजकल यहीं हूं अच्छा हां मामाजी अपने भानजे के साथ बनारस घूमने लगे। चलो, कोई साथ तो मिला। कभी इस मंदिर, कभी उस मंदिर। फिर पहुँचे गंगाघाट। सोचा, नहा लें। मुन्ना, नहा लें ? ज़रूर नहाइए मामाजी….बनारस आये हैं और नहाएंगे नहीं, यह कैसे हो सकता है ? मामाजी ने गंगा में डुबकी लगाई। हर-हर गंगे। बाहर निकले तो सामान गायब, कपड़े गायब, लड़का…मुन्ना भी गायब  ‘मुन्ना…ए मुन्ना…. मगर मुन्ना वहां हो तो मिले। वे तौलिया लपेट कर खड़े हैं। क्यों भाई साहब…..आपने मुन्ना को देखा है ? कौन मुन्ना ? वही जिसके हम मामा हैं। मैं समझा नहीं…. अरे, हम जिसके मामा हैं वो मुन्ना। वे तौलिया लपेटे यहां से वहां दौड़ते रहे….मुन्ना नहीं मिला। भारतीय नागरिक और भारतीय वोटर के नाते हमारी यही स्थिति है……चुनाव के मौसम में कोई आता है और ह

मैं हूं क्योंकि हम हैं!

 'उबुन्तु' एक सुंदर अफ्रीकी शब्द है! एक बार एक अंग्रेज़ पादरी अफ्रीका के 'कालाहारी रेगिस्तान' में गया था, वो जानना चाहता था कि कालाहारी जैसे कठोर वातावरण में बहुत कम भोजन और पानी के बावजूद ज़िंदा कैसे रहते हैं?  उसकी रिपोर्ट थी कि जिंदा रहने के लिए आदिवासियों को आपस में कड़ा संघर्ष करना पड़ेगा। यह जानने के लिए उसने विविध बच्चों को एक खेल खेलने के लिए कहा। उसने 'मिटाइयों से भरी डोकरी' दूर एक पेड़ के पास रख दिया और बच्चों ने कहा कि, जो बच्चा दौड़कर सबसे पहले उसे सभी मिठाइयां खाने को मिलेगा। यह सुनकर गरीब-भूखे बच्चे खुशी से चिल्लाने लगे। जैसे पादरी ने कहा : ... रेडी स्टेडी गो ! सभी बच्चों ने एक दुसरे का हाथ पकड़ लिया और सब के सब एक साथ पेड़ की ओर दौड़ पड़े, वहां जाकर उन्होंने मिठाइयाँ आप में बांट ली और महीने से भोजन करने लगे। यह दृश्य देखकर अंग्रेज पादरी हैरान रह गए, उन्होंने बच्चों से पूछा कि, उन लोगों ने ऐसा क्यों किया? बच्चों ने एक सुर में कहा:- "उबुंटू (उबंटू)" पादरी ने पूछा:- ये "उबुंतु" क्या होता है ? बच्चों ने बताया कि:- यह उनका काबिले का