कहां हैं जीवन समंदर को मथने वाले सृजनकार!


 मंजुल भारद्वाज


दुनिया में बड़ा दर्द है  ज़िंदगी बहुत सर्द है


ढूंढ़ रही हमदर्द है  हुक्मरानों की मारी दुनिया


सारी करहाते हुए  लगा रही गुहार है


कहीं कोई मथ दे जीवन का  समंदर हर ले


पीड़ा कर दे विष  और अमृत अलग विष को


अपने कंठ में धर समाधिस्थ हो जाए 


गंगा जीवन का अमृत लिए बहती रहे कहां हैं  कौन हैं वो


सृजनकार जो अपने सृजन से


ज़िंदगी के समंदर को मथ रहे हैं


अपने सृजन से दुनिया का दर्द पी रहे हैं


हुक्मरानों के ज़ुल्म से बचने का


जज़्बा जनता में जगा रहे हैं !


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