तेरी जुदाई में..

सुरेंद्र सैनी 


तेरी जुदाई में दिल अकसर रोता है


हँसता हूँ, दर्द मेरे अंदर होता है.


मैं जगता रहता हूँ रातभर ,


मगर, मेरा महबूब घर में चैन से सोता है.


मिलते हैं दो दिल और जुदा होते हैं.


ऐसा तो मोहब्बत में सदा होता है.


नींद भी नहीं रहती इन आँखों में.


और मेरा दिले - चैन भी खोता है.


मेरे सपनों में तू ही बारबार आता है.


और नयी - नयी बाहर लाता है.


तेरा चेहरा दिन-रात सामने आता है.


तुम करीब हो तो कुछ नहीं होता.


तेरी दूरी से तेरा ही ख्याल आता है.


"उड़ता"ये खब्त है कब सर से उतरे,


तू हर दिन लफ्ज़ से नज़्म बनाता है.


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