इतना जल्दी तो गिरगिट ना बदले
चाल बदली है...
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता"
उन्हें देखकर क्यों चाल बदली है
अतीत फेंककर फटेहाल बदली है
दो - चार दिन क्या गुजारे शहर में
उनके चेहरे की रंगत-जमाल बदली है
लोग उसका नाम अदब से लेते थे
हालात बदले तो मिसाल बदली है
नए तरीके फंसाने के ईज़ाद किए है
वक़्त के साथ पुराने जाल बदली है
हम तो आज भी वादे पर कायम हैं
नियत नहीं बदली,ये साल बदली है
आज फिर चौक पर शौर हो रहा है
लोग वही हैं बस वज़ह-बवाल बदली है
इतना जल्दी तो गिरगिट ना बदले "उड़ता"
जो कि देखते दुनियां बेमिसाल बदली है../
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें