तांडव पर लोगो का तांडव सही या गलत?

प्रकाश शुक्ला 

यह समझना मुश्किल है कि सैफ़ अली ख़ान ने अभी तक वेब सीरीज़ 'तांडव' को लेकर बयान क्यों नहीं दिया? माफ़ी क्यों नहीं मागी? खेद क्यों नहीं जताया? उन्हें धार्मिक भावनाओं को लेकर अच्छी समझ होनी चाहिए। क्योंकि मां से हिंदू और पिता से मुस्लिम संस्कार मिले होंगे। दोनों धर्मों का सम्मान और दोनों धर्मों की मान्यताओं का सम्मान उनसे बेहतर कौन जानता है? पहली पत्नी हिंदू और दूसरी पत्नी भी हिंदू। फिर भी वह समझ नहीं पाए कि उन्होंने जाने और अनजाने क्या होने दिया और क्या कर दिया? 

या फिर सैफ़ अली ख़ान ने यह सब अपनी एक विशेष धार्मिक चेतना की वजह से होने दिया। मैं सोच रहा हूं कि अगर तांडव की स्क्रिप्ट में इस्लाम के सच्चे रसूल पैगंबर मोहम्मद साहब की वेशभूषा में उन्हीं के नाम वाले किसी चरित्र के मुंह से अपशब्द वाले संवाद शूट हो रहे होते, तो सैफ़ की धार्मिक चेतना और धार्मिक समझ किस तरह से रिएक्ट करती? क्या वह ऐसी स्थिति में अपना एतराज जताते। वैसे, हमारी आपत्ति दोनों में है। किसी की भी धर्म की अपनी मान्यताओं के साथ खिलवाड़ सामाजिक सद्भाव के लिए विष है। 

वामपंथी प्रैक्टिस वाले लेखक को तो छोड़ दीजिए, जिसे यह समझ नहीं है कि शिव तांडव किस स्थिति में करते हैं और फिल्म में कौन-सा तांडव दिखाया गया है। उसकी हिंदू मान्यताओं और पौराणिक समझ इतनी कमजोर है कि बचपन से यह नहीं सीखा कि शिव डमरू के साथ सौम्य और शांत तांडव करते हैं, नृत्य करते हैं तो प्रकृति में आनंद की बारिश होती है। 

फिल्म की कथा के अनुरूप अगर जबरन सीरीज़ के नाम को जस्टिफाई करने के लिए शिव का तांडव दिखाना था या फिर उनकी वेशभूषा में किसी चरित्र के ऊपर इस तरह का सीन लिखना था,तो मूर्खाधिराज फिल्म की कथा सत्ता से आक्रोश की कथा है, जिसमें शिव का बिना डमरू वाला तांडव दिखाना चाहिए था, जिसे वह गुस्से में करते हैं, तो प्रकृति कांपने लगती है। 

जीशान आयूब से स्टेप पर तांडव करवा देते, गाली तो नहीं दिलवाते।रही बात जीशान की तो उसकी भी इतनी समझ होनी चाहिए थी। लेकिन, यह समझ भी एक विशेष धार्मिक मान्यता तक ही सीमित रही और उससे आगे नहीं बढ़ पाई, जबकि वे खुद को प्रगतिशील कहते हैं। ऐसी प्रगतिशीलता जो फ्रांस में गला कटने पर खामोश हो जाती है। 

अब वक्त आ गया है, जब खुलकर इस तरह के कंटेंट का विरोध किया जाए, क्योंकि अगर आपने इस वक्त ऐसे कंटेंट को प्रसारित करने वाले प्लेटफॉर्म और ऐसी सीरीज बनाने वाले लेखक और निर्देशकों के खिलाफ मोर्चा नहीं खोला, तो आपकी युवा पीढ़ी के जेहन में ऐसे ही बिंब रहेंगे जिसमें सनातन धर्म पाखंड, और सनातनी परंपरा दकियानूसी की तरह छाएगी। इसलिए, जरूरी है कि नियत पहचानी जाए और इस सुनियोजित प्रोपोगेंडा को समझा जाए। मैं निजी तौर पर अमेजन प्राइम का भी विरोध करता हूं। साथ ही मांग करता हूं ऐसे दृश्यों के लिए माफी मांगी जाए और उन्हें फौरन हटाया जाए। ये मेरे निजी विचार हैं। सहमत और असहमत होने का अधिकार सबको है।


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