तेरा चूल्हा जलता रहे







                             

मंजुल भारद्वाज

नये साल में

हर हाल में

हर रसोई में

गाँव,शहर,बसती में

तेरा चूल्हा चलता रहे

ना भूख से कोई मरे !


शियार थे पहले

सवार सत्ता पर

भाग जाते थे

ढोल बजाने से

भेड़ों के झुंड को अब

लकड़बग्गों ने घेरा है

जान ले डरते हैं

लकड़बग्घे मशालों से

उठा जलती

चूल्हे की लकड़ी को

तेरे डेरे का रौशन सवेरा हो !


मानता हूँ

मौसम जानलेवा है

तूफ़ान से लड़ने का तेरा हौंसला

तेरी फ़ितरत का कलेवर है

तू जानता है

मारने वाले से बढ़कर

बचाने वाला है

बचा ले लोक का तंत्र

तेरा लंगर भतेरा है !


याद रख

एक संगत,एक पंगत

बुनियाद है संविधान की

बुद्ध,नानक,गांधी की धरती पर

आज हिंसा

दहशत का अँधेरा है

बहा प्यार की गंगा

तेरे चूल्हे की लकड़ी से

अब उजाला हो  !

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