मोहताज नहीं
अलग मेरी कोई आवाज़ नहीं
सुरेंद्र सैनी
हाल जो कल था वो आज नहीं
कोई मेरे दिल में छिपा राज़ नहीं
प्रेम मुझे है तुमसे और बेइंतहा है
ये प्रेम मिलन का मोहताज नहीं
किसी और से ताल्लुक नहीं मेरा
मेरा बेवजय का कोई समाज नहीं
हर दिन नयी धुन गुनगुनाता हूँ मैं
एक जैसा जो बजे वो साज़ नहीं
कुछ अल्फाज़ उकेर लिए "उड़ता"
इनसे अलग मेरी कोई आवाज़ नहीं
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