इस गरजते कर्ज की अवा'कुछ हो (कमी)
दवा कुछ हो..
- सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता"
इस बिगड़ते मर्ज की दवा कुछ हो
मुश्किलों में घिरा शख़्स क्या करे
एक इति हो नहीं तो सवा कुछ हो
सूखते जा रहे जाने ये दरख़्त क्यों
जो दे रूह-साँस ऐसी हवा कुछ हो
जोकि जला लूँ मैं भी हालात अपने
हुनर-हौसलों से बना तवा कुछ हो
"उड़ता"कोशिशों का गवा कुछ हो
जैसे चाँद को निहारता लवा' कुछ हो
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें