दीपदानोत्सव जरूर मनाये
- देशवासियों से अपील कल (23-10-2022) सभी अपने घर/ऑफिस पर दीपदानोत्सव जरूर मनाये..
- दीपदानोत्सव/दीपोत्सव/धम्म ज्योति पर्व/प्रकाश पर्व/दीपावली/ धम्म दीवाली कब से और क्यों मनाई जाती है..
अजय मौर्य
प्राचीन काल में ऊरवेला (बोधगया) में बोधिवृक्ष के नीचे तथागत को ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे गोतम से बुद्ध बन गए। भगवान बुद्ध, ज्ञान प्राप्ति के बाद अपने पिता के अनुरोध पर पहली बार कपिलवस्तु पधारे तब कपिलवस्तु नगरवासियों ने भगवान बुद्ध के स्वागत में असंख्य दीप जलाकर दीपोत्सव/दीवाली मनाई थी।
सम्राट अशोक महान ने तथागत बुद्ध के 84000 सूक्तों से प्रेरित होकर चौरासी हजार विहार, स्तूपों, चैत्यों और संघारामों का निर्माण करवाये थे। निर्माण कार्य पूर्ण हो जाने के बाद सम्राट अशोक महान ने कार्तिक चतुर्दशी को एक भव्य उद्घाटन महोत्सव का आयोजन किया।
इस महोत्सव के दिन सारे नगर, द्वार, महल तथा विहारों एवं स्तूपों को दीप माला एवं पुष्प माला से सुसज्जित किया गया तथा भारतवासियों ने इसे एक पर्व के रूप में हर्सोल्लास के साथ मनाया। सम्राट अशोक ने इस पर्व को “दीपदानोत्सव” नाम दिया। सम्राट अशोक के समय से शुरू यह उत्सव सम्राट वृहद्रथ मौर्य के समय भी मनाया जाता था।
यशस्वी सम्राट वृहद्रथ की हत्या के बाद विषमतावादी लोगों द्वारा इस प्राचीन पर्व का स्वरूप बदल दिया। आज आप जो दीपावली मनाते हैं वह सम्राट अशोक कालीन दीपदानोत्सव का विकृत स्वरूप है।
दीवाली चतुर्दशी को ही क्यों?
यहाँ पर एक प्रश्न उभर कर सामने आता है कि जब भगवान बुद्ध के जीवन में कई घटनाएं पूर्णिमा को हुई हैं इसलिए बौद्धों के लिये पूर्णिमाओं का बहुत महत्व है तो फिर सम्राट अशोक ने उन चौरासी हजार विहारों, स्तूपों, चैत्यो, संघारामों का उद्घाटन चतुर्दशी को ही क्योँ किया?
इस महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर भी एक महत्वपूर्ण एवं दुखद ऐतिहासिक घटना से सम्बंध रखता है। वह कार्तिक चतुर्दशी का ही दिन था जिस दिन भगवान बुद्ध के प्रिय और महान शिष्य ही नही बल्कि भगवान का बायां हाथ कहे जाने वाले भिक्खु महामोग्गल्लान की हत्या षडयंत्र के तहत कर दी गई थी। उन दिनों चारो ओर भगवान के धम्म का प्रभाव बड़ी ही तीव्र गति से बढ़ने लगा था और लोग विषमतावादी व्यवस्था को छोड़कर बुद्ध धम्म की शरण में आने लगे थे। इससे परजीवी वर्ग का वर्चस्व खतरे में पड़ गया था उनकी आवभगत में कमी आने लगी और उनका मान-सम्मान कम होने लगा। इसलिए उन्होने ईर्ष्यावश तरह तरह से भगवान बुद्ध का विरोध करने, बदनाम करने और धम्म को खत्म करने का षडयंत्र करना शुरु कर दिया।
इसी विरोध की एक कड़ी में विषमतावादियों ने पूज्य भिक्खु महामोग्गल्लान को लाठी डण्डो से पीट पीट कर मार डाला। अपने इस षडयंत्र की सफलता के कारण परजीवियों ने खूब खुशी मनायी। किन्तु बौद्धो में मातम छा गया।
चतुर्दशी की यह काली रात बौद्धों के मातम का प्रतीक बन गई थी। इस अन्याय और क्रूरता का अनुभव सम्राट को अच्छी तरह हो चुका था। पूज्य भिक्षु महामोग्गल्लान की हत्या का दुख उन्हे कम रहा होगा। जितना कि दुख मोग्गल्लान की मृत्यु पर खुशी मनाते हुए विषमतावादियों को देखकर होता रहा होगा।
इसलिए सम्राट अशोक महान ने मोग्गल्लान की मृत्यु के दुख को कम करने के लिये तथा विषमतावादियों की खुशी का मुंहतोड़ जबाब देने और पूरी वसुधा में भगवान बुद्ध के धम्म को स्थापित करने के उद्देश्य से ही सम्राट अशोक महान ने अपने द्वारा बनवाए गए 84000, धम्म स्मारकों का उदघाटन कार्तिक चतुर्दशी की काली रात में असंख्य दीप जलाकर किया था। पूज्य भन्ते महामोग्गल्लान और सारिपुत्र की अस्थियाँ सम्राट अशोक महान ने सांची के ऐतिहासिक स्तूप में सुरक्षित रखी थी।
कैसे मनाएं दीपदानोत्सव दीपदानोत्सव
अपने घरों में धम्म स्थल बनाएं। धम्म स्थल में तथागत बुद्ध प्रतिमा व राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ रखें। उनके समक्ष दीप प्रज्वलित कर, बुद्ध वन्दना, त्रिशरण,पंचशील का सामूहिक पाठ करें। भिक्खु संघ को दान करें। खीर, मिठाई का भोजन करें। पूरे घर को दीप जलाकर प्रकाशित करें।
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