भूख की तृष्णा भिक्षुओं को खींच लाती है चारबाग़

मोहित लोधी
लखनऊ. राजधानी में भिक्षावृत्ति करने वालो की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है. कारण स्पष्ट है जब लोगो के सामने दीनहीन बनकर हाथ फैलाने से भोजन दान और अर्थदान मिलने लगे तो भिक्षा भी एक व्यवसाय बन जाता है. 
सारा दिन भिक्षु कहीं भी भिक्षा मांगे पर शाम ढलते ही चारबाग़ क्षेत्र ही उनका ठिकाना होता है. 
यहाँ तमाम सामर्थ्य वान दानवीर दान करने के उद्देश्य से चारबाग़ आते जाते रहते है. यही नही यहाँ तमाम ऐसे होटल्स भी है, जो भिक्षुओं को सुबह -शाम का नाश्ता - भोजन दान करते है. 
कभी-कभी ऐसी विषम स्थिति उत्पन्न हो जाती है भिक्षु द्वारा लालचवश कई दिनों से एकत्र किया गया भोजन भी दुर्गन्ध मारने लगता है. रोज़ाना भिक्षुओं को दानदाताओ से जो अर्थ प्राप्त होता है. उससे वो नशे का सेवन करते है. 
फुटपाथ के सहारे दोनों ओर भिक्षु दान और भोजन की लालसा में कतारबद्ध होकर बैठे रहते है. जिसका प्रमाण कल रात देखने को मिला नत्था तिराहे के निकट पेट्रोल पंप के सामने एक नामी मिठाई शॉप के करीब जब एक व्यक्ति फुटपाथ के सहारे नशे की हालत में बैठा हुआ था. 
बगल से निकल रही कार की चपेट में आकर लहुलुहान होकर घायल हो गया. जिसे समय रहते नाका पुलिस ने मौके पर पहुंच कर इलाज के लिए अस्पताल भेज दिया. 
भिक्षावृत्ति को समाप्त करने को लेकर समय-समय पर उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा उनके पुनर्वास की बात कही जाती है. पर वो सब किवदंतियां ही बन कर रह जाती है. क्या यह भिक्षु भी कभी सभ्य समाज का हिसा बन पाएंगे. 
कही न कही लोग अपने पूर्व जन्मों के आकरण प्रारब्ध से मुक्त होने के लिए दान-पुण्य का सहारा लेते है. बस यही इंसान की प्रवृत्ति एक अच्छे खासे इंसान को भिक्षु बना देती है.

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