समता, बंधुता और शांति का पैरोकार हो रंगमंच! -मंजुल भारद्वाज
विश्व_रंगमंच_दिवस पर समता, बंधुता और शांति का पैरोकार हो रंगमंच, पर ऐसा हो नहीं रहा. रंगमंच सत्ता के वर्चस्व का माध्यम भर रह गया है और रंगकर्मी उसकी कठपुतलियाँ जो रंगकर्म के मूल उद्गम के ख़िलाफ़ है. रंगकर्म का मूल है विकार से मनुष्य और मनुष्यता को मुक्त करना . मनुष्य के विचार को विवेक की लौ से आलोकित करना. रंगकर्म समग्र है, मनुष्यता का पैरोकार है. रंगकर्म की प्रक्रिया ‘स्वयं’ को आग में जलाकर ज़िन्दा रखने जैसी है. आत्मविद्रोह का अहिंसात्मक, कलात्मक सौन्दर्य है रंगकर्म. सौंदर्य बोध ही इंसानियत है. सौंदर्य बोध सत्य को खोजने,सहेजने,जीने और संवर्धन करने का सूत्र है. सौंदर्य बोध विवेक की लौ में प्रकशित शांति की मशाल है जो तलवार से टपकते खून को निरर्थक साबित कर तलवारबाज़ों को मनुष्यता के योद्धा नही शत्रु सिद्ध करती है. रंगकर्म के इसी सौंदर्य बोध को सत्ता ने लूट लिया. सौंदर्य बोध के अमूर्त विवेक को मूर्त शरीर तक सिमटा दिया. कलाकारों को विवेक सौंदर्य से चमकने की बजाय भोग और लिप्सा के वशीभूत कर सत्ता के गलियारों में रेंगते हुए प्राणियों में बदल दिया. रंग यानी विचार के कर्म को नुमाइश बना दिया. दुन